सोमवार, 12 जनवरी 2009

प्यार


कभी चटख रंगों की धूप में

प्यार उदास नज़र आया

तो कभी बोलती आंखों में

नज़र आया खामोश ।

और कई बार

उम्मीद से चहकता हुआ

पर, निराश नज़र आया


कभी फीके रंगों की धुंध में भी

प्यार खिला-खिला नज़र आया

तो कभी महकती सांसों में

नज़र आया मदहोश

और कई बार

नाउम्मीदी में बुझता हुआ

पर, उजास नज़र आया

3 टिप्‍पणियां:

  1. अनगिनत रंगो का एकत्र सम्मिलन ही तो प्यार है.
    धन्यवाद.

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  2. प्यार के अलग-अलग रंगों को खुबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने. सही है, प्यार पहले नफरत की जगह ले फ़िर यह ख़ुद ही इश्वर की जगह ले लेगा.

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  3. प्यार के रंगों को बड़ी खूबसूरती से बयाँ किया है. सच में बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
    Keep it up!!!

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