शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

मैं क्यों लिखता हूँ ?

कभी कोई शब्द, कोई विचार, कोई घटना ,तो कभी कोई भड़ास मजबूर करती है लिखने को। लिख चुकने के बाद एक राहत सी महसूस होती है। इसे आप स्वान्तः सुखाय भी कह सकते हैं । फिर लगता है इसे कोई पढ़े भी । इसीलिए , यह ब्लॉग बनाना पड़ा। इसपर आप रु ब रु होंगे। कभी मेरे फुटकर विचारों से , कभी अधूरे, आवारा अरमानों से , कभी गहरे अहसासों से , तो कभी तल्ख़ अनुभवों से ... जो होंगे, कभी शेरों ,कभी कवितओं तो कभी लेखों के रूप में। जाहिर है इसमें कभी होगी आप बीती और कभी जग बीती । फिर ,कभी पढ़िये तो सही।