सोमवार, 19 जनवरी 2009

खुद से खुद का रिश्ता



ऐसा लगता है


अब ख़ुद से भी


दूर का ...


बहुत दूर का


एक चलताऊ -सा


उबाऊ रिश्ता है।


जानी-पहचानी


ये शक्ल


मेरी ही है


मगर ,


यह मैं नहीं


कोई और ही


लगता है

शनिवार, 17 जनवरी 2009

मुझे चाँद चाहिए


यहाँ ,

हर किसी को चाहिए

एक निजी चाँद

वो भी बेदाग

मुश्किल बस यही है

एक ही है चाँद ।

अपनी अलग जमीं

और अलहदा आसमान

है,

हर किसी की मांग।

सोमवार, 12 जनवरी 2009

वो


वो अपना न था

पर, उससे अपनापन

अपनों से ज्यादा मिला।



वो दूर था बहुत

पर, करीब

करीबी लोगो से ज्यादा रहा।



अनजाना था वो

पर, पहचाना

जाने-पहचाने लोगों से ज्यादा लगा।

प्यार


कभी चटख रंगों की धूप में

प्यार उदास नज़र आया

तो कभी बोलती आंखों में

नज़र आया खामोश ।

और कई बार

उम्मीद से चहकता हुआ

पर, निराश नज़र आया


कभी फीके रंगों की धुंध में भी

प्यार खिला-खिला नज़र आया

तो कभी महकती सांसों में

नज़र आया मदहोश

और कई बार

नाउम्मीदी में बुझता हुआ

पर, उजास नज़र आया

शनिवार, 10 जनवरी 2009

तुम भाषा हो



कभी लगता है


तुम भाषा हो


ऐसी भाषा


जिसे ठीक-ठीक


सिर्फ मै ही


समझ सकता हूँ.


पढ़ सकता हूँ


हर्फ-हर्फ


लफ्जों को


सिर्फ मैं ही.

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

कुछ वादें, नए साल के बहाने (2)


नए साल के बहाने
कुछ वादें करता हूँ
खुद से.
खुली आँखों से देखूंगा
दिल खोलकर सपने
और पीछा करूँगा
दीवाने की तरह.
दुनिया के लिए और उपयोगी
और अपनों के लिए और सहयोगी
बनने की कोशिश करूँगा.
शातिर दिमाग पर रखूँगा सतर्क निगाह
अगर चलेगा कोई खतरनाक चाल
दिल के नाजुक रिश्तों के खिलाफ
तो उतारूंगा उसके कपड़े.
उधेडूगा उसकी खाल.
मंजिलें हासिल करने की होड़ में
जिंदगी की जंग में अंत तक
कभी अपराधी नहीं
पूरी तरह आदमी ही बना रहूँगा.


शनिवार, 3 जनवरी 2009

कुछ वादें, नए साल के बहाने (1)


नए साल के बहाने
कुछ वादें करता हूँ ,
ख़ुद से।
रखूँगा बिल्कुल अलग-अलग
चीजों को घाल-मेल नहीं करूँगा
आपस में।
जिन चीजों , जिन लोगों से
करता हूँ नफरत
अब पहले से ज्यादा करूँगा
जिनसे करता हूँ मुहब्बत
उनसे अब और शिद्दत से करूँगा
चाहतों की सब हदें पार कर जाऊंगा।
जिन्हें चाहता हूँ और
जिन्दगी में जो पाना चाहता हूँ
उसके लिए , कोशिशें और तेज़ कर दूंगा।
दिल को होने दूंगा दीवाना
बनने दूंगा पागल
खूबसूरती के के पीछे और
धड़कनों को दूंगा पूरी इजाज़त
खुलकर धड़कने की।
जिन्दा रहूँगा अपनी ज़िम्मेदारी पर
और मरूंगा -खपूंगा अपनी बला से
पर, ज़माने के लिए ज़रूरी सामान बनूँगा।





गुरुवार, 1 जनवरी 2009

नया साल

इस नए साल पर
पुराने कल को
मैंने याद किया।
किया शुक्रिया
उस वक्त का,
जो अच्छा या बुरा
मेरे साथ गुजरा।
हाँ , स्वागत भी किया
साल के आगमन का
यह चाहे जैसे बीते।