बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

रिश्ते



आज जो तुम


उलझ गये हो


सुलझाने में


रिश्तों के उलझे धागों को.


काश! तुम पहले समझ पाते


कि रिश्ते,


गणित के नियमों से नहीं चलते


नहीं जुड़ते नाते, जोड़-तोड़ से.



कभी भी दिल से


जुड़े तो तुम किसी से नहीं


हाँ,चतुराई भरा एक 'रिश्ता'


सबसे तुम जोड़े रहे,


दिल के मासूम रिश्तों में


दिमाग खूब लगाते रहे.



किसी को अंकों के पहले का


तो किसी को दशमलव के बाद का


बेमूल्य शून्य समझा और


अमूल्य रिश्तों का मूल्य


अंकों में आंकते रहे,


जिंदगी को


बनिए की बही-खाता समझते रहे.

1 टिप्पणी:

  1. mere paas likhne ke liye shabd nhi rahe,padhte hi jaise mai mook ho gaya hoon...
    bata nhi sakta ki aapki ye rachna mujhe kis kadar parbhivit kar gai...
    bahoot khoob..........

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